सती दाक्षायणी शक्ति धाम एवं सिद्धेश्वर महादेव मंदिर, सांचौर
सती दाक्षायणी शक्ति धाम तथा सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर, सांचौर उपखंड मुख्यालय से 5 कि.मी. उत्तर दिशा में सिद्धेश्वर गांव में सती दाक्षायणी शक्ति धाम तथा सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर है। इस पावन स्थल का वर्णन स्कंद पुराण में अग्नि क्षेत्र के रूप में किया गया है। प्राचीन काल में जब सांचौर सत्यपुर (Satyapur) नाम से वैभवशाली नगर था, उस समय सती दाक्षायणी का विशाल भव्य मंदिर था, जो नगर की उत्तरी सीमा का निर्धारण करता था।
स्कंद पुराण के वर्णनानुसार शाकल्य ऋषि की कन्या “साची” ने शाप मुक्ति हेतु आशुतोष हर (महादेव) की आराधना की। भगवान हर (शंकर) के प्रसन्न होने पर यह स्थल साची एवं हर के संयुक्त नाम से “साचीहर” कहलाया (Sati Dakshayani) राजा दक्ष की पुत्री एवं शिव की अर्धांगिनी होने के कारण यह स्थान सतीपुर नाम से जाना गया। सती दाक्षायणी की इच्छा से ही नगर के चारों ओर विशाल प्रकोटा बनाया गया एवं देवी स्वयं सती दाक्षायणी के रूप में अधिष्ठित हुईं।
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Sati Dakshayani Shakti Dham & Siddheshwar Mahadev Mandir, Sanchore |
पौराणिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि दक्ष की पुत्री सती ने अपने पिता के यज्ञ में, जब अपने पति शंकर के अपमान से आहत होकर स्वयं को यज्ञ कुण्ड में समर्पित कर दिया, तब तंत्र चूड़ामणि के अनुसार सती के मृत शरीर के विभिन्न अंग और आभूषण 52 स्थलों पर गिरे, जो शक्तिपीठों के रूप में प्रतिष्ठित हो गए। सिद्धेश्वर स्थित सती दाक्षायणी धाम (Sati Dakshayani Shakti Dham) में सती दाक्षायणी (Sati Dakshayani)अपने सर्वांग रूप में विराजमान हैं। सती के दाहिनी ओर सिद्धेश्वर महादेव (Siddheshwar Mahadev) प्रतिष्ठित हैं। इस प्रकार इस शक्तिपीठ में शक्ति और शिव दोनों एक साथ प्रतिष्ठित हैं। यह शक्तिपीठ साचीहर ब्राह्मणों का उपासना स्थल है।
महमूद गजनवी और अलाउद्दीन खिलजी ने इस प्राचीन नगर के वैभव को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया, उसी दौरान सती दाक्षायणी का मंदिर भी ध्वस्त हुआ, जिसके प्रमाण यहाँ स्थित खंडित प्रतिमाओं और अन्य साक्ष्यों में मिलते हैं। कहा जाता है कि मुस्लिम आक्रांताओं से सती दाक्षायणी और शिवलिंग को भूमिगत करके साचीहर विप्रवरों ने बचाया तथा अपने प्राणों की आहुति दी।
कालांतर में वि.सं. 1763 को चैत्र वदी 5, रविवार को व्यास चतुर्भुजजी कात्यायन ने अंतःप्रेरणा से सिद्धेश्वर के टीले के नीचे से इस चमत्कारी प्रतिमा को निकालकर चबूतरे पर विराजमान किया। तत्पश्चात् वि.सं. 1802 में जनसहयोग से एक छोटा मंदिर बनाकर सती दाक्षायणी की पुनः प्रतिष्ठा का मांगलिक अनुष्ठान सम्पन्न किया गया।
सांचौर क्षेत्र में कई प्राचीन और पौराणिक धार्मिक स्थल स्थित हैं, जिनमें पातालेश्वर महादेव मंदिर, सेवड़ा और गोलासन हनुमान जी मंदिर, गोलासन भी श्रद्धालुओं के बीच प्रसिद्ध हैं।
वर्तमान में सिद्धेश्वर मंदिर तक पहुँचने के लिए सांचौर की दूरी और परिवहन मार्गदर्शिका का अनुसरण किया जा सकता है। वर्ष 1981 में स्व. पंडित राम नारायण न्यास का गठन किया गया। परिणामस्वरूप वर्तमान में यहाँ संगमरमर का विशाल भव्य मंदिर, सुंदर यज्ञशाला, धर्मशाला, भोजनशाला इत्यादि का निर्माण संभव हुआ। इस शक्तिपीठ में शारदीय एवं चैत्र नवरात्र की साधना का विशेष धार्मिक महत्व है।